
HIS LITTLE AARA
बारिश जोरों पर थी। सड़कें पूरी तरह भीग चुकी थीं और आसमान ऐसा लग रहा था मानो वो भी किसी के जाने का गम मना रहा हो।
अस्पताल के मुर्दाघर से दो सफेद चादरों में लिपटे हुए शरीर बाहर लाए जा रहे थे। लोग खामोश थे, कुछ की आंखें नम थीं, और कुछ की रूह कांप रही थी।
उसी कोने में, एक छोटी सी बच्ची – दो साल की आरा – अपनी छोटी सी ड्रेस में, गीले बालों के साथ किसी को ढूंढ रही थी। उसके गालों पर आंसू नहीं थे, शायद वो समझ नहीं पा रही थी कि आखिर हुआ क्या है। लेकिन उसके दिल में एक डर था।
मम्मा, जो हमेशा उसके पास रहती थी, अब कहीं दिख नहीं रही थी। पापा की मुस्कान भी जैसे कहीं खो गई थी।
"म...म्मा..." उसने धीमे से पुकारा।
लेकिन कोई जवाब नहीं आया।
मुंबई के उस अस्पताल में भीड़ कम थी, लेकिन एक शख्स ऐसा था जिसकी मौजूदगी भारी लग रही थी – राजवीर सिंह रायचंद। दुनिया के टॉप 10 अमीरों में उनका नाम था, लेकिन आज उनकी आंखों में सिर्फ खामोशी थी। उनके साथ थीं उनकी पत्नी संध्या, जो आरा को देखकर जैसे टूट चुकी थीं।
संध्या धीरे से आरा के पास गईं और उसे अपनी गोद में उठा लिया। किसी अनजान की गोद में जाते ही आरा ने उनका चेहरा देखा। जब उसे एहसास हुआ कि ये उनकी मम्मा नहीं हैं, तो वो जोर-जोर से रोने लगी।
"मम्मा चाहिए... मम्मा चाहिए..."
संध्या ने अपनी आंखों की नमी के साथ आरा को अपने सीने से लगा लिया।
"बेबी, देखो मम्मा, मैं तुम्हारी मम्मा हूं।"
आरा ने जल्दी से सिर हिलाया और "ना... ना..." कहकर सिर हिलाने लगी।
वो एक दो साल की बच्ची थी, जो ना ठीक से बोल पाती थी और आज अनाथ हो गई थी। दुनिया में उसका अब कोई नहीं बचा था। वो इतनी जोर से रो रही थी कि उसकी सांसें भी उखड़ने लगी थीं।
संध्या उसे इधर-उधर घुमाते हुए चुप कराने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन आरा चुप ही नहीं हो रही थी।
राजवीर ने देखा कि आरा चुप नहीं हो रही, तो वो संध्या के पास गया।
"Wifey, वो बहुत रो रही है। हम क्या करें?"
संध्या ने अपने इमोशन्स को कंट्रोल करते हुए कहा,
"मुझे खुद नहीं पता राज, क्या करना है। देखो ना, इस छोटी सी जान को चुप ही नहीं हो रहा। अब तो उसकी सांस भी नहीं आ रही।"
राजवीर ने संध्या की गोद से आरा को अपनी गोद में लिया। उसने आरा को अपने सीने से लगाया और उसके पेट को सहलाने लगा ताकि रोने की वजह से उसकी उखड़ी सांसें ठीक हो सकें। वो आरा के बालों को चूम रहा था, उसकी पीठ सहला रहा था और धीरे-धीरे उससे बातें भी कर रहा था।
"मेरी शोना बच्चा , अब चुप हो जाओ बेटा, शांत हो जाओ। देखो, ये रही तुम्हारी मम्मा," संध्या की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा।
आरा, जो अब थोड़ा चुप हो रही थी, उसने संध्या की तरफ देखा। फिर अपनी बड़ी-बड़ी गीली आंखों से राजवीर को देखते हुए कहा, "मम्मा..." उसने एक लंबी सांस ली, "मम्मा..."
राजवीर ने उसके चेहरे को अपनी बड़ी सी हथेली से पोंछा और कहा, "हां बाबू, मम्मा, जाओ मम्मा के पास।"
संध्या अपनी आंखों में ममता लिए आरा को देख रही थीं। उन्हें बेटियां बहुत प्यारी थीं, लेकिन भगवान ने उन्हें तीन बेटे ही दिए। तीसरे बेटे के बाद भी वो एक और बच्चा चाहती थीं, ताकि उन्हें बेटी मिले। लेकिन डॉक्टर ने चेतावनी दी थी कि अगर वो प्रेग्नेंसी करेंगी, तो उनकी जान को खतरा हो सकता है।
राजवीर अपनी बीवी से जान से ज्यादा प्यार करता था। उसके लिए उसकी वाइफ ही सब कुछ थी। वो तो पहली डिलीवरी के बाद ही और बच्चे के लिए मना कर रहा था, क्योंकि उसने संध्या को डिलीवरी के दर्द में तड़पते देखा था। लेकिन अपनी पत्नी के सामने वो कभी जीत नहीं पाया। इसीलिए दो बार और प्रेग्नेंसी हुई। लेकिन फिर डॉक्टर की सलाह और राजवीर की इच्छा थी कि वो अपनी बीवी को बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं बनाना चाहता था।
संध्या ने भी इसके बाद कोई जिद नहीं की। उसने सोचा था कि जब उसकी देवरानी प्रेग्नेंट होगी, तो शायद उसे बेटी मिले। लेकिन उसकी देवरानी को भी दो लड़के ही हुए। इस बात से घर की तीनों सास-बहुएं बहुत दुखी थीं कि उनके घर में कोई बेटी क्यों नहीं आ रही।
लेकिन आज देखो, उनके घर में एक बेटी आ रही थी।
राजवीर ने अपने बच्चों को जितना प्यार किया, उससे कहीं ज्यादा प्यार वो आरा पर लुटा रहा था। और इस बात से संध्या को बिल्कुल बुरा नहीं लग रहा था, क्योंकि उसे पता था कि राजवीर अपने पांच बच्चों से बहुत प्यार करता है। लेकिन अब शायद प्रायोरिटी बदल जाएगी। घर में शायद ही किसी को आरा से ज्यादा प्यार न हो।
**कहानी पर वापस**
संध्या ने अपनी बाहें फैलाईं।
"आओ बच्चा, देखो मैं तुम्हारी मम्मा हूं। चलो, मम्मा के पास।"
आरा ने संध्या को देखा और अपने दोनों हाथ हवा में उठाकर रोने लगी, "मम्मा... मम्मा..."
संध्या ने उसे अपने सीने से लगा लिया। "हां बाबू, मम्मा यहीं है।"
आरा रोने की वजह से बहुत थक गई थी। बारिश में भीगने की वजह से उसके कपड़े गीले थे, जिससे उसे ठंड भी लग रही थी और वो कांप रही थी।
संध्या ने उसे अपने सीने से अच्छे से चिपकाकर रखा और उसके सिर को सहलाने लगीं। थोड़ी देर ऐसे ही रहने से आरा थकान की वजह से सो गई।
संध्या ने राजवीर की तरफ देखा, जिसकी नजर आरा पर ही थी।
"राज," संध्या ने पुकारा।
राजवीर ने आरा से नजर हटाकर अपनी बीवी की तरफ देखा। "हां, वाइफ?"
संध्या ने कहा, "राज, हमें गुड़िया को घर ले जाना चाहिए।"
राजवीर ने भी सिर हिलाया और कहा, "हां, तुम सही कह रही हो। लेकिन हमें 2-3 दिन यहीं रुकना होगा, जब तक अमन और अंजलि का पोस्टमॉर्टम, उनका अंतिम संस्कार और सारी विधियां पूरी नहीं हो जातीं।"
संध्या ने भी हामी में सिर हिलाया।
अमन, संध्या, राजवीर और अंजलि, ये सब कॉलेज के दोस्त थे। राजवीर और संध्या दिल्ली में रहते थे, जबकि अमन और उनकी पत्नी अंजलि मुंबई में। लेकिन दोनों कपल्स साल में एक बार जरूर मिलते थे। अमन और अंजलि दोनों ही अनाथ थे। उनकी फैमिली के नाम पर बस दो दोस्त थे – राजवीर और संध्या।
राजवीर को ही सबसे पहले फोन आया था। ये खबर सुनते ही राजवीर और संध्या तुरंत दिल्ली से मुंबई आ गए थे।
राजवीर ने संध्या की गोद में सो रही आरा को देखा और कहा, "वाइफ, तुम ड्राइवर के साथ घर जाओ (अमन के घर)। मैं यहां की फॉर्मैलिटी पूरी करके आता हूं। बच्ची ने भी पता नहीं कुछ खाया है या नहीं।"
संध्या ने हामी में सिर हिलाया और आरा को लेकर घर चली गईं।
**तीन दिन बाद**
**दिल्ली**

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